गज़ल - अदबी इदारो से खिंच लाये गज़ल को फकीरों में

गुफ्तगुं में जुनूं और आँखों से खू टपकता है
jay bastriya photo
वक्त की शागिर्द है हम, नज़ाकत क्या करें

शायरी के  नाम पे, तोहमत ही लगाते है हम
तेरी शिकायत जायज है खिलाफत क्या करें

वल्लाह तेरी नफ़रत मुझे नई जमीन देती है
बिलाशर्त तेरे सामने हम, शिकायत क्या करें

लज्जत-ए-वफ़ाई से दिल तेरा पिघलता नही
तू ही बता तुझे मनाने को शराफ़त क्या करे

हम तुझ पे आशना है और तू गैर की मुरीद
मकतल-ए-इश्क में बता तुझसे मुरव्वत क्या करें

बेच कर खुद को माँगा था, तेरा अश्क शर्तिया
तू ही बता हमें इससे बड़ी तिज़ारत क्या करे

अदबी इदारो से खिंच लाये गज़ल को फकीरों में
हम कम सुखन इससे बड़ी हिमाकत क्या करे

शिकस्ता है तेरी पैरहन-ए-जिन्दगी जब ’नादां’
खुद से बेज़ार वो किसी से, अदावत क्या करे    

टिप्पणियाँ

  1. लज्जत-ए-वफ़ाई से दिल तेरा पिघलता नही
    तू ही बता तुझे मनाने को शराफ़त क्या करे
    ..................
    इस शेर में "लज्जत-ए-वफ़ाई " शब्द को उकेरने का अंदाज बेहतरीन है ....पर ग़ज़ल की असली लज्जत
    अदबी इदारो से खिंच लाये गज़ल को फकीरों में
    हम कम सुखन इससे बड़ी हिमाकत क्या करे
    इस शेर में है .......दिल लुट लिया !!!!

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