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नवंबर, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कविता - दंतेवाडा में ( नडगु के साथ पॉचदिन गुजारने के बाद )

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उस गाँव में ( नडगु के साथ पॉचदिन गुजारने के बाद ) मुझे लगा सब कुछ हम पर उनका उधार है। ब्याज मुल से कही अधिक, कई गुना अधिक। नड्गु के मन में मचल रही थी इतनी लम्बी अंतरंगता के बाद भी मेरे लिये, बहुत सी बातें। कुछ गलत तो नही था वो, नड्गु लिख सकता तो लिखता बस्तर पुरा लिख सकता, तो जरुर लिखता। मेरे विरुद्ध कुछ...... तुम्हारे पॉच सितारा भावंनाओं के समस्त सरोकारों से दुर कही बस्तर में हमारा जीवन गुफ्फा दादा (नक्सलाइट) और पाइक (पुलिस) के दो पाटो में पीस रहा जबरजस्त हमारा जीवन, जो बस्तर में बन रहे भवनों, सडकों, कागजी योजनाओं की तरह गैर आपत्ति का विषय है हमारा वजुद, हमारी स्थिति, नियति इन सबका नियति तुम हमे गिन सकते हो जनगणना के प्रपत्र ‘द’ में तुम हमे पहचान सकते हो छ्त्तीसगढ टुरिज़्म के पाम्पलेट में तुम हमें देख सकते हो एंथ्रोपॉयलोजी के संग्राहलय में हमारा जीवन, हमारी संस्कृति हमारा गीत, हमारा संगीत हमारा कोरस। हमारे राग, अनुराग हमारे रोष, आक्रोष के उपर कही आपके मोटलों में आपका छुट्टी का दिन बहुत अच्छा गुजरेगा कार्यशालाओं, परिचर्चा, पी.एच.डी. का गम्भी

विचार - सरकारी स्‍कुल बनाम प्राइवेट स्‍कुल

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The life in Village of  Baster -near by Dantewada सरकारी स्‍कुल बनाम प्राइवेट स्‍कुल ; आदमी का अस्‍पताल बनाम ढोर अस्‍पताल भारत में शिक्षा के मामले में ' स्कूल की उपलब्धता , गुणवत्ता और सभी के लिए सामान अवसरों का होना ' हमेशा से चिंता का विषय रहा है | देश की सामाजिक बनावट व आर्थिक विषमता के कारण   ' सभी के लिए एक जैसी शिक्षा ' के सिद्धांत के सामने हमेशा यक्ष प्रश्न रही है और शिक्षा हमेशा कई स्‍तर में   खण्‍डों   में बंटी रही है | अभिजात्यों, उच्‍च मध्‍यम वर्ग   के लिए उनकी हैसियत के मुताबिक महंगे और साधन संपन्न स्कूल, मध्‍यम वर्ग तथा गरीबों व मेहनतकशों के लिए सरकारी व अर्ध सरकारी स्कूल जिनकी उपलब्‍धता, गुणवत्ता लगातार संदिग्‍ध रही है , कभी धन के अभाव में तो कभी लचर ढांचों के कारण तो कभी गैरजिम्‍मेदार अधिकारियों या अकुशल शिक्षकों की भीड । विडंबना यह है कि देश की तीन चौथाई आबादी के लिए बने सरकारी स्कुलो की दुर्दशा और नीजि स्‍कुलों की रूपयों मे हांसिल सुविधा और गुणवता नीतिनियंताओं को दिखाई नही देता । पांच सितारा अंग्रेजी स्कूल हैं जो सुनिश्चित सर्वोच्‍च नौकरी या स

विचार - शिक्षा जगत की खमिया - हम साक्षर हैं लेकिन शिक्षित नहीं

शिक्षा जगत की ख़ामियां  -   हम साक्षर हैं लेकिन शिक्षित नहीं   शिक्षा मानव एवं देश के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। शिक्षा से व्यक्ति सभ्य नागरिक बनता है व सभ्य नागरिक सभ्य समाज का निर्माण करता है। मै एक बात का उल्‍लेख करना चाहुंगा भारतीय विद्यालयीन शिक्षा प्रणाली की गुणवत्ता पर आधारित एएसईआर के एक अध्ययन से पता चलता है कि 38 प्रतिशत बच्चे छोटे-छोटे वाक्यों वाला पैराग्राफ नहीं पढ़ सकते और 55 प्रतिशत सामान्य गुणा – भाग नहीं कर सकते. बुनियादी शिक्षा में विस्तार तो हुआ है लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की चेष्टा तक नहीं हुई है शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे एक ग़ैर सरकारी संगठन कह्ते हैं कि ग्रामीण भारत के सात लाख बच्चों और पॉच लाख से अधिक घरों के सर्वेक्षण में मिले आंकड़े एक कड़वी सच्चाई बयान करते हैं. बच्चे स्कूल तो जा रहे हैं पर वे पढ़ लिख नहीं पा रहे हैं. वे गणित के आसान सवाल भी नहीं सुलझा पा रहे हैं. वे कहते हैं कि देश के अन्य राज्यों के ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों में ऐसा सुधार नहीं आया है. देश में केवल 56 फ़ीसदी शहरी बच्चे एवम 42 प्रतिशत बच्चे ही ऐसे हैं

कविता - मेरा बस्तर - 3

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मेरा बस्तर -3 क्या तुम उसे दे पाओगे उसके होठों की स्वतंत्र हंसी उसके ऑखों को एक विशाल स्वप्न क्या तुम उसे दे पाओगे एक विशाल स्वप्न को साकार करने की ललक उसे बना पाओगे संघर्ष के साथ निखरा कल का खरा सोना नही- नही तुम दे सकते हो सिर्फ और सिर्फ पढने का सरकारी क्षति पुर्ति भत्ता कुछ बदरंग पुस्तकें एक फटी हुई टाटपट्टी टुटी खपरैल से झांकते धुप पर उंघता हुआ देश का भविष्य कुर्सी पर बेजार बैठ दसख्वत और तंख्वाह का हिसाब रोज- रोज दोहराता थका पका अपने आप से बेजार गुरुजी तुम दे सकते हो सिर्फ इतना तुम दे नही सकते ? अपने पॉव में खडे होने की ललक अपने रास्ते खुद तलाशने की कसक. तो क्युं खडा कर रहे हो ? एक बरगद के पौधे को सारे सहारों मे पाल कर बना रहे हो एक रीढ विहिन वल्ल्ररी क़्या यह नही है ? कल के विशाल बरगद की हत्या. किस्तों में वो भी आज मुकम्मल.