गज़ल - हम कहते है तब उज्र है दावा है दफा है


पढे लिखों का है, शहर कितना जुदा है
है इबारती दिवारें, पर कितनी सफा है।

हम कहते है तब उज्र है दावा है दफा है
कानून तब सिर्फ हम गरीबों पर खफा है

पीठ पर ही लिखोगे हमारे हर इबारत
अजब है जनाब, पर ये आपका नशा है

बिजली गिरे तो सिर्फ मेरे ही घर पर
अजब जायज उनका यह फलसफा है

एक ही रास्ते, दोनो थे मिल कर चले
तुमसे हुआ वफा हमने किया जफा है

जब चाहा रौशनी, रोशनाई में डूबो दी 
तिजारत करने वालों का सब में नफा है

क्यूं सुखनी है अबकी फसले मेरे गॉव की
मुझे नही, पहाड के धुन्ध को सब पता है

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