चन्द शेर - 'नादाँ ' बस्तरिया

चन्द शेर

हवाओ में बसी जुल्फ की खुशबु हम से परवाने  जान पाते है
वो क्या जाने जो खुद के कदमो के आवाज से धोखा खाते है

आशिक-ए-आफताबी कर, आशिकी-ए-शबनम खून ठंडा कर देगी
हक़-ओ-परस्ती कर, तेरी आवाज-ए-आवाम जुल्म मंदा कर देगी

आज उसकी यादो ने हमें फिर रंगीन कर दिया
हमने भी अपना दिल जला, खूब मनाई होली |

उसने बड़ी बेदर्दी से मेरे दीवानगी को कुछ एहतराम किया
बड़ी नफ़ासत से अफ़साना-ए-इश्क से मेरा नाम हटा दिया

जुल्फे तेरी बिखर कर जलजला अख्तियार है 
नदी को सावन ने जवां किया किसने कहा ये

दूर रहकर भी तुम, दिल के कितने करीब हो .
ये फ़ासले, ये बेताल्लुकी, सिर्फ दुनियादारी है  

इतना आसान नही ये सफ़र तुम साथ चल सको
दो कदम साथ चल, तुम भी यूँ रास्ते बदल लोगे

जज्बा होना चाहिए ताकत खुदा दे ही देता है 
तहे दिल की कोशिशो को वफ़ा दे ही देता है   

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