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ग़ज़ल - फर्क क्या मीना साकी कौन मयखाना किसका

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ये तिश्नगी ये महफ़िल ये ज़माना किसका  फर्क क्या मीना साकी कौन मयखाना किसका जिस मुल्क के हुक्कामों   की फितरत   फरेब हो   फिर कैसे  तसल्ली   और आजमाना किसका इस राह में     दुश्वारियों    जब    रोजनामचा हो तब छोड़ जाना किसका और निभाना किसका जब राहे इश्क में  वफ़ा यूँ मुख़्तसर सी बात हो गैर राह जाना किसका और संग आना किसका मसरुफ़ियत है    उनकी जब    गैर के महफिल में तब याद करना किसका और भूलजाना किसका

गज़ल -- बदगुमानी में ना कहीं बदजुबान हो जाए

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इस मुफ़लिस का  सफर आसान हो जाए                 Child of Dantewada  गर राह की दुश्वारियाँ हम जुबान हो जाए हमारी अकीदत वो काबुल करले जो नादां हमारी बेइमानी  भी  उनका  ईमान हो जाए दोस्तों की दिया सामान सफर में संग है दिल फ़रेबी ना कहीं मेरे बयान हो जाए मुस्कुराने की कोताही बेसबब यूँ ना कर   शहर को तेरी बेदिली का गुमान हो जाए असलहों की दुनिया में किताबों की बाते   ज़ाहिद कहीं तू भी ना अन्जान हो जाए वजीरो से अर्जेहाल से कब है बात बने   सुने जब तेरे वजूद से वो परेशां हो जाए हम मजलूमों से वो तज़्किरा करते नादां बदगुमानी में ना कहीं बदजुबान हो जाए 

ग़ज़ल -- खुद्दारी के मायने भी क्या पूछते हो हमसे

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तेरी बेताल्लुकी से उबर आना , हम जानते है दर्द से दर्द का रिश्ता निभाना हम जानते है Life & Triangle  दुश्वारियों में जीने की अदा कोई   सीखे   हमसे   हर जख्मो-ओ-गम में मुस्कुराना हम जानते है तुम्हे अपना कहूँ कैसे अजनबी सा रुख है तेरा तू दिल्लगी कर पर दिल लगाना हम जानते है हम वो नही जिन्हें अपने जुनून पे ऐतबार नही आंसूं हो या पानी आग लगाना हम जानते है   तूफान की मिज़ाज को तवज्जो मिलेगी हमसे दरिया के किनारे भी डूब जाना हम जानते है खुद्दारी के मायने भी क्या पूछते हो हमसे अपने ही आँखों से गिर जाना हम जानते है दुनियादारी उनकी मजबूरियां होंगी पर नादाँ रिवाज-ओ-दश्तुर को अजमाना हम जानते है

ग़ज़ल - या इश्क ने अब अपनी सूरत सियाह कर लिया

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not उनके शौक़ के लिए खुद को तबाह कर लिया खुदा ना बन जाए सोच कुछ गुनाह कर लिया वो जुल्फे सँवारे फिर अंगड़ाई ले या मुस्कुराए   क़यामत के पहले , शहर को आगाह कर दिया नजर ना लग जाए मेरे जुनून को नाकद्री की यही सोच हर हंसी के बाद एक आह भर लिया हुश्न की सूरत ओ सीरत के फासले बढ़ने लगे या इश्क ने अब अपनी सूरत सियाह कर लिया दोस्तों की दोस्ती से तंग आकर अब ' नादाँ ' दुश्मनों को अब हमने खैर-ख्वाह कर लिया  

ग़ज़ल - ज़िद है अब हर ज़िद से टकरा कर देखेंगे

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जब अँधेरे ढक रहे सूरज के उजाले को साभार - बचेली बचेली  आओ एक नई रौशनी उगा कर देखेंगे पुर्ननवा पत्तों को जब जला रही ये हवा आओ अपने साँसों से महका कर देखेंगे  उग रहा है  साज़िशो का जंगल वतन में चलो जज्बे का दावानल जला कर देखेंगे निज़ामे-मुल्क संवार नही सकते किस्मत अब अपने हांथों की लकीरे बना के देखेंगे बद्दुआ देना हर मसले का हल नही ‘नादाँ’ ज़िद है अब हर ज़िद से टकरा कर देखेंगे  

कविता - कविता नागफनी हो जाती है

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जब आज जीवन सरल एवं सपाट नही तब मेरी कविता से यह उम्मीद कैसे रखते है आप ? एक चाँद, इक लडकी, एक फूल पर कविता सरल सपाट कविता,  श्रृंगार रस की कविता की  और तब,  जब कविता मेरे लिए जीवन संघर्ष एवं प्रतिपल मृत्युबोध का नाम है भूख, रोटी और एक धोती के साथ एक टुकडे छत का नाम कविता है कविता मेरे लिये अनुभुति, चिन्तन यथा अभिव्यक्ति है मेरी कविता मेरा दर्द है तब बन्धे हाथों से और खुली आँखों से मै दिवारों के कानों से बचते हुए सोचता हूँ तुम्हारी दुनिया, मेरी दुनिया दोनों जब तरह-तरह की भाषा से पटी पडी हो जब जातियां, वर्ग और चमडी के रंगों के तरह तरह के परौकारो से अटी पडी हो जब मैदानों का चरित्र पहाडों को संक्रमित कर रहा हो तब हवा दिमाग में भर जाती है तब जंगल आँतों मे उग आता है तब स्तब्ध या क्षुब्ध कविता नागफनी हो जाती है तब भी आप मुझसे एक चाँद, इक लडकी, एक फूल पर कविता सरल सपाट कविता,  श्रृंगार रस की कविता की  की उम्मीद रखते है  

ग़ज़ल - धुप की छलनी लिए हम प्यास को निथारते रहे

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नापता रहा मै रोटी और भूख के बीच की दूरियाँ  गिरकर सम्हलने से पहले ठोकरे मुझे पुकारते रहे लुटा कर अपनी दुनिया चढ़ा हमें  उसुलो का नशा हासिल-ए-नाकद्री मिलती रही कर्ज ये उतारते रहे साजिशो का काम या मेरी किस्मत की बाजीगरी हांथो की लकीरे बदलती रहीं लकीरे निहारते रहे ताउम्र की जद्दोजहद है  ये रिज्क की जद्दोजहद धुप की छलनी लिए हम प्यास को निथारते रहे आवाम के दम पर वो उगाते रहे नोटों की फसल सियासत-ओ-वक्त की गल्तियाँ हम सुधारते रहे फिक्रो-रंजो-मलाल   जब अपने नसीब हों ’नादाँ’ सियासतदां और दलालों की भूख हम संवारते रहे

ग़ज़ल - देखना हम भुखे कब इन्कलाब ले आयेंगे

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खून में साँसों में इक इज्तेराब ले आयेंगे हम हर प्रश्न का, एक जवाब ले आयेंगे by Google  कब तक बंद करोगे ये दरवाजे खिड़कियाँ   देखना हम नई रोशनी नई आग लेआयेंगे खामोशी को गुश्ताखियों की जबां न कहो देखना हम भुखे कब इन्कलाब ले आयेंगे सूती के कपड़ो में जहां उगती ये लडकियां वहां नीद ना हो पर हम ख्वाब ले आयेंगे वक्त नजरअंदाज करता रहे हमारा वजूद तो उपरवाले से अपना हिसाब ले आयेंगे ये निज़ाम ये सरमाएदार काबिल है सब क्या ये आईने को कभी जवाब दे पायेंगे   रास्ते तराशना जिनकी फितरत है ‘नादाँ’ वो पत्थरों में फूल और शबाब ले आयेंगे

कविता - तुम्हे कितना यकीन है

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तुम्हे कितना यकीन है वक्त के साथ  तुम्हारे आदर्शवाद नही बदलेंगे तुम्हारी नैतिकता नही बदलेगी तुम्हारे आदर्श और स्वार्थ के बीच की जंग में तुम्हारी आत्मा विजित होगी इस स्वप्न और तुम्हारी नीदं के होने को भंग सिर्फ एक पल की दुरी है समस्त नैतिकता, आदर्श   और पुरुषार्थ सब की एक मजबुरी है कब-कब कहाँ-कहाँ क्या-क्या जरुरी है यह तुम नही तय करोगे और तुम्हे कितना यकिन है ? तुम्हारे पाँव के नीचे जमीन है ? सच और झुठ की हदें नापने तुम्हारी व्यवस्था में एक सच्चा अमीन है वो संगठित लोगो का तंत्र  तुम्हारी आत्मा को नोंच-नोंच निर्धारित दरों पे कमीशन की तरह बांट खायेगा और तुम्हारे हाथ लोकतंत्र की खाक आयेगा अरे सुनों अब तो कर लो अपनी नीदं भंग शुरु करो एक नई जंग कर दो कापुरुष व्यवस्था का अंग-भंग उठो  आओ  मेरे साथ  यदि तुम्हे अपने पर यकीन है

गीत - ठहर जा, ए मेरे अरमां, अधूरी ये कहानी है - चार

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ठहर जा , ए मेरे अरमां , अधूरी ये कहानी है वो हीर वो सोहनी वो लैला, बस ज़ुबानी है किस्सा-ए-वफा की ये मिसालें, ये किस्सों की बाँतें है कौन कहता है हुश्न को ये सब निभानी है इश्क की ये लाचारी, आग को कहते है पानी है तकल्लुफे हुश्न पर अब इश्क चलता था साफ़ जाहिर थी वो बैचेनी , वो पहलू बदलता था उसकी मजबूरी थी या वो यूँ भी चाल चलता था कभी आँखे मिलाता , कभी आँखे बदलता था कभी आँचल गिराता था , कभी गिरा कर सम्हलता था वो उम्र - ए - दौरां थी,  क़यामत  हरपल मचलता था वो आँखों के कोरों का पूछना , वो भौहों की तीरगी कैसी वो दूर जाकर मुड़ कर देखना , पास वो बेहद बेरुख़ी कैसी वो पत्थर की मूरत से , ये मेरी बंदगी कैसी दुश्मन-ए-जाँ से दिल्लगी कैसी लुट कर मेरा सकून-ओ-जहां अब वो ही कहते हो ये क्या किस्से कहानी है ठहर जा , ए मेरे अरमां , अधूरी ये कहानी है

गीत - ठहर जा ए मेरे अरमां, अधूरी ये कहानी है ..तीन

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मुस्कुराया देखा या देख मुस्कुराया क्या फर्क पड़ता है सितम जरीफ  क़त्ल से पहले कातिल क्या - क्या चाल चलता था उसका इश्क नए ज़माने का रोज़ चेहरा बदलता था इक मेरी आवारगी पर ना मेरा बस ही चलता था इस दर से उसके दर तक ये मुसाफ़िर बेबस ही चलता था चल चलें सफ़र को बस अब के चल निकलना है  खुदा को मुहँ भी दिखाना है , कुछ रस्मे दुनिया भी निभानी है ठहर जा , ए मेरे अरमां , अधूरी ये कहानी है मेरे दिल में दबे तूफ़ान को वो मेरी धड़कन समझते है जाहिर है मिरे गर्दिशे अय्याम को वो कम समझते है है सितम जरीफ पर खुद को मेरा हमदम समझते है आँखों में लिए ख़्वाब उस तेज़ाब का हम ना पलके है झपकायें तड़फ आँखों की या दिल की हम किसको बतलायें  कैसे कहे किसके राहे शौंक ने मुझे यूँ बेबस  है  बनाया  उड़ा कर आलम - ए - हवास मेरा , ना ठुकराया ना अपनाया खुदाया वो दर्द की दुनिया को कुछ कम समझते है अपने हर करम को मेरे दर्द का मरहम समझते है अपने नम आँखों की शरारत को वो अपना गम समझते है लुफ़्त - ए - किस्सा -- ए - गैरे वफ़ा ले , हमें वो कम समझते है उनका हर किस्सा कुछ नया है , पर हर्फ

गीत - ठहर जा, ए मेरे अरमां, अधूरी ये कहानी है...दो

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ठहर जा , ए मेरे अरमां , अधूरी ये कहानी है दिल की सुनाऊं या कहूँ जो ज़ुबानी है सुन सको तो ये किस्सा - ए - वफ़ा तुमको सुनानी है वो नज्म़ या गुल या जैसे डल झील की किश्तियाँ  वो शबाब की वो मस्तियाँ उजडती दिल की बस्तियां बरात - ए - नूर को फर्क क्या किसका घर ये जलता था होते क्या - क्या हादसे , जाने क्या क्या बदलता था नागफनी के बिस्तर में मै करवट बदलता था इस दिल का क्या , बात - बेबात मचलता था  वो कभी आँखे तरेरे है कभी आँखें फेरे है उगते सूरज को वो हांथो से घेरे है करे क्या अभी उसकी , ये चढ़तीं जवानी है ठहर जा , ए मेरे अरमां , अधूरी ये कहानी है