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काफ़िर कहना मुझे जायज है ......

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तुझ से ये दूरी भी अजाब है तेरा पास होना भी बेकली है sabhar -desh मेरी मजबूरी की हद कितनी दिल पे बस दिल की चली है पुरे दिन सूरज से उलझा रहा शाम है के अब आकर ढली है मसरूफ़   है हम तन्हाई में अपनी हम पे कब हमारी ही चली है तू हयात तू दहर तू आरजू तेरे बाद ही अली है वली है काफ़िर कहना मुझे जायज है दिल खुदा है दिल की भली है  ख्वाहिशों उजालो की साजिशे हमारी दुनिया अंधेरों पली है ठोकर बेरुखी बदनीयत भरी ‘नादाँ’ दुनिया कितनी भली है   ........ जयनारायण “नादाँ” बस्तरिया  

काफ़िर कहना मुझे जायज है ......

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तुझ से ये दूरी भी अजाब है तेरा पास होना भी बेकली है sabhar -desh मेरी मजबूरी की हद कितनी दिल पे बस दिल की चली है पुरे दिन सूरज से उलझा रहा शाम है के अब आकर ढली है मसरूफ़   है हम तन्हाई में अपनी हम पे कब हमारी ही चली है तू हयात तू दहर तू आरजू तेरे बाद ही अली है वली है काफ़िर कहना मुझे जायज है दिल खुदा है दिल की भली है  ख्वाहिशों उजालो की साजिशे हमारी दुनिया अंधेरों पली है ठोकर बेरुखी बदनीयत भरी ‘नादाँ’ दुनिया कितनी भली है   ........ जयनारायण “नादाँ” बस्तरिया  

मेरा वजुद

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मेरा वजुद सूख रही नदी के रेत के नीचे पानी सा पल रहा है उपर कहीं तुम परदेशी सुरज से इरादे लिए लावे सा बहते रहो तकते रहो मेरी बस एक चूक पर देखना देखना इक दिन रेत के नीचे का यह पानी नदी के दोनो किनारों में जंगल उगा लायेगा हरा-भरा देखना सम्हलना देखना इस जंगल की जड़ें तुम्हारे आँखों के नीचे लपलपा रहे रेगिस्तानी इरादों को जकड़ सकती है तुम्हे लकवाग्रस्त कर सकती है .........जयनारायण बस्तरिया