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अज़ब सियासी फितरत है हुश्न यार की ...

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दोस्तों,  एक गज़लसा... ------------------------------------------------------------------ दिल-ए-बेकरार से वो ये करार कर गये वादे वफा के कुछ युँ ही हजार कर गये खिलौनों का शौक उम्र का कायल नही खेल मेरे दिल से तजुर्बे संवार कर गये अज़ब सियासी फितरत है हुश्न यार की जुल्फों के साये लिया फिर वार कर गये लाइलाज के इलाज़ से युँ बाज़ीगरी हुई नब्ज में उँगलियाँ रखी बीमार कर गये दर्द के हम ही एक खरीददारे बाज़ार थे बेमोल ही वे तिज़ारत-ए-बाज़ार कर गये काँटों से खेलते गुजरी बेदाग ये जिन्दगी एक फुल के खरोंच मुझे लाचार कर गये ज़माने के मुकाबिल नाकाबिल हुए'नादाँ' वो गये क्या सारे फ़न मेरे बेकार कर गये जयनारायण बस्तरिया 'नादाँ'

कुछ सुरत मैने सुरत बदली मेरी सीरत तो नही

नाउम्मीद भुख बैचेन सिलसिला हर साँस-साँस जो ये मुफलिसी वो पुछे है 'नादाँ'  ये बेदर्द  ईद भी  कभी तो हम से पुछ कर आती जिन्दगी फरेब का दुसरा नाम है  ये हुश्न कुछ ज्यादा ही बदनाम है रोटी बदले  है रोज ये चेहरे 'नादाँ' अब  दिन-ओ-इमाँ सब बेकाम है हबीब कौन थे रकीब कौन थे ये कभी इल्म ना हुआ हर हाँथ के पत्थर 'नादाँ' पूछे थे तेरा मुल्क कौन है नजर दुर तक जाती है लौट आती है तेरे जाने की राह है कहीं जाती नही आवारगी अकेले ही मुनासिब है हम अकेले ही बदनाम सही जुनूने आवारगी हद उससे क्यूँ कर पूछे है  भटकती राहों से 'नादाँ' घर का पता पूछे है हम तो बेबस दिल की उस दिलदार को सुनाते हैं आप की काबिलियत है इसे जो शायरी बताते है   हर इनायत का मकसद क्या है इस अहद में कहना मुश्किल है तेरा साया भी 'नादाँ' जब तेरे पीछे जब धूप से बचता फिरता हो यह दिल बेवजह ही तुझसे मोहब्बत कर बैठा बेशबब की शरारत  इस "नादाँ" की आदत है "नादाँ" भी बिकेगा इक काबिल खरीददार तो मिले दर-ए-इमाँ के मुकाबिल मुकम्मल बाज़ार तो मिले पूराने यारों की पुरानी चि

काफ़िर कहना मुझे जायज है ......

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तुझ से ये दूरी भी अजाब है तेरा पास होना भी बेकली है sabhar -desh मेरी मजबूरी की हद कितनी दिल पे बस दिल की चली है पुरे दिन सूरज से उलझा रहा शाम है के अब आकर ढली है मसरूफ़   है हम तन्हाई में अपनी हम पे कब हमारी ही चली है तू हयात तू दहर तू आरजू तेरे बाद ही अली है वली है काफ़िर कहना मुझे जायज है दिल खुदा है दिल की भली है  ख्वाहिशों उजालो की साजिशे हमारी दुनिया अंधेरों पली है ठोकर बेरुखी बदनीयत भरी ‘नादाँ’ दुनिया कितनी भली है   ........ जयनारायण “नादाँ” बस्तरिया  

काफ़िर कहना मुझे जायज है ......

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तुझ से ये दूरी भी अजाब है तेरा पास होना भी बेकली है sabhar -desh मेरी मजबूरी की हद कितनी दिल पे बस दिल की चली है पुरे दिन सूरज से उलझा रहा शाम है के अब आकर ढली है मसरूफ़   है हम तन्हाई में अपनी हम पे कब हमारी ही चली है तू हयात तू दहर तू आरजू तेरे बाद ही अली है वली है काफ़िर कहना मुझे जायज है दिल खुदा है दिल की भली है  ख्वाहिशों उजालो की साजिशे हमारी दुनिया अंधेरों पली है ठोकर बेरुखी बदनीयत भरी ‘नादाँ’ दुनिया कितनी भली है   ........ जयनारायण “नादाँ” बस्तरिया  

मेरा वजुद

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मेरा वजुद सूख रही नदी के रेत के नीचे पानी सा पल रहा है उपर कहीं तुम परदेशी सुरज से इरादे लिए लावे सा बहते रहो तकते रहो मेरी बस एक चूक पर देखना देखना इक दिन रेत के नीचे का यह पानी नदी के दोनो किनारों में जंगल उगा लायेगा हरा-भरा देखना सम्हलना देखना इस जंगल की जड़ें तुम्हारे आँखों के नीचे लपलपा रहे रेगिस्तानी इरादों को जकड़ सकती है तुम्हे लकवाग्रस्त कर सकती है .........जयनारायण बस्तरिया

ये भेडियो की दुनिया है यूँ मेमनो का जलसा है

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   ये भेडियो की दुनिया है    यूँ मेमनो का जलसा है जय बस्तरिया @स्कूल    खैर कुछ सांसो की  है    अब तब ये पल सा  है    बस्तर की बेख्याली है    या पेशानी मे बल सा है    यूँ तो भुख मैदानों की है    पहाड़  में दावानल सा है    कुछ साजिशें ये घात है    हर दर्द ही    हल सा  है    सोचो की ये सूरत बदले    आज भी सब कल सा है    भटके हांथो में लगाम है    ये आग है या जल सा है    उन्हें ये बदगुमानी है बस    अब सबकुछ ग़ज़ल सा है    जो आसमां पाँव में उठाये    झींगुरों के इक दल सा  है जयनारायण बस्तरिया