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आइना या अक्स ये मुकम्मल न हुआ

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जाने किसकी तलाश में सफ़र तमाम करते रहे जीने की आरजू लिए हम हर मोड़ पर मरते रहे इश्क़ में हसरतें मुठ्ठी से रेत सी फिसलती रहीं उम्र भर ख्वाहिशों का खाली मकान भरते रहे आईना या अक्स किससे ये मुकम्मल न हुआ बेमक़सद ही हम ये किस किस से लड़ते रहे जुर्म कर हर जुर्म बाउसूल कुबूल किया हमने अपने ही उसूलों की आग में हमही जलते रहें जुगनू तितली ख़्वाब नागफनी सब ने खेला यूँ जीतने साँचे मिले उतने ही साँचों में ढ़लते रहे बड़ी नादान सी फितरत रही है हमारी भी 'नादाँ ' सिर्फ ज़ख्म अजीज़ थे हम जख्मों में पलते रहे जयनारायण बस्तरिया 'नादाँ '©

ये नशा न उतरे वो ख़ुमार रह जाये

एक गज़लसा...  ये नशा न उतरे वो ख़ुमार रह जाये  इस इश्क में इतना करार रह जाये  बेकरारी का मज़ा भी खूब है 'नादाँ ' वो ना आये अब इन्तजार रह जाये माना वो चारागर है मर्जे इश्क का मेरा मर्ज मर्ज रहेे बीमार रह जाये ये नज़्म मेरे ये जख़्म मेरे ये दर्द मिरे तेरे जिक्रो किस्सों ये शुमार रह जाये गुलशन की ये इल्तज़ा अब कुबूल हो ख़िजा भी आये ये बहार भी रह जाये तु हुश्न रहे तु जहाने इश्क का खुदा रहे दुआ कुबूल हो मन्नतें हजार रह जाये ना इश्क ही ना तिज़ारत हो सका 'नादाँ ' रहने दो कुछ ख्वाहिशें उधार रह जाये जयनारायण बस्तरिया 'नादाँ ' .......... खुमार = हल्का सा नशा करार = धैर्य, शर्त, अनुबंध चारागर = चिकित्सक मर्जे इश्क = इश्क की बीमारी मर्ज = बीमारी जिक्रो = उल्लेखों शुमार = सामिल इल्तज़ा = निवेदन ख़िजा = पतझड़ तिज़ारत = व्यापार ...........