गज़ल - हम तेरे मजबूर है खुद मुख्तार कहाँ
नये रस्म-ओ-रीत
बना के देख लिया
तुमने हर हद
अजमा के देख लिया
आवारगी ही हमारी फितरत है पक्की
तेरे दर जा के, ना जा के, देख लिया
तेरी ज्यादती
से भी हम मुक़ाबिल हुए
अपना सब्र भी
अजमा के देख लिया
हम तेरे मजबूर है खुद मुख्तार कहाँ
हर शुं दिल
को भरमा के देख लिया
तेरे दर से
मयखाने तक की जिन्दगी
अब हमने खुद
इम्तेहां के देख लिया
वो ही है, तासीर तेरे नज्म की “नादां”
हर शेर गजल
से उलझा के देख लिया
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