गजल - इतनी रौशनी काफी है या दिया ले आउंगा मै
अज़ल तक तेरी ये आशिकी ले जाउंगा मै
मेरे अश्क के असरार क्यों पूछता मुझसे
अबस इन आँखों की नरगिसी दे जाउंगा मै
पाबंद हूँ परस्तिश का, उस पारदारी का नही
फिरदोस में भी फैज़-ए-फ़सल बो जाउंगा मै
बेकस, बेख़ता, बेकुसूर मेरे बयान है. बेबस
बेगुनाही है खता मेरी, सादगी दे जाऊँगा मै
आग लगा घर पर मासूमियत से पूछता ‘नादां’
इतनी रौशनी काफी है या दिया ले आउंगा मै
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