ग़ज़ल - हर सिम्त गम-ए-गम में ‘नादाँ’ संदल-संदल


गुंचों ने खिल के, आग लगा दी बहार में
उसने पूछा कैसे, मौसम होता है प्यार में

वो आज भी ना आयें  मौसम-ए-बहार में
मजा तो है बस इस बेकरार, इन्तजार में

मासूम फितरत है मेरी, वो बुत संग-दिल
तबाही मुकरर है तब मजा कहाँ इन्कार में

शाने में सर उसका उंगलियों में जुल्फे ख़म
बड़ी शिद्दत की बेकरारी भी है इस करार में

हूबार है या जलजला उसका अंदाज-ए-इश्क
सांस धड़कन, ख्वाब गर्त उस के रफ़्तार में

झुकी आँखे उठे क़यामत का असर रखती है
उसे भी मजा है क़त्ल से पहले इन्तजार में

हर सिम्त गम-ए-गम में ‘नादाँ’ संदल-संदल
हम है बंदगी है नशा है  फ़क़त इस खुमार में 
जयनारायण बस्तरिया 'नादाँ'

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