gazal - आग में दहकती गरीबों की बस्ती है, वजूद-ए-नादाँ




आशिक़--आफताब हूँ, बुझते शोलो से डरना क्या
तूफान सी जिद हमारी, उस दिये का ठहरना क्या

थोड़े  सपने, कांटे और पांवो के  छालों का हिसाब
राह-ए-शौक में अपनी ही, खताओं से मुकरना क्या

फ़र्क क्या करूँ, तेरी रहमत या सज़ा  का ऐ ख़ुदा
इस दुनिया में ठहरना क्या दोज़ख से उतरना क्या

नीयत--हाकिम की साजिशे जब लाजमी है दोस्त
मेरे घर की दीवारों का ठहरना क्या, बिखरना क्या

फ़ाक़ाकशी को हमने शौक का लिबास दिया है रब
फांकामस्त शक्लों का संवारना क्या निखरना क्या

आग में दहकती गरीबों की बस्ती है, वजूद-ए-नादाँ
इसके गलियों में ठहरना क्या, इससे गुजरना क्या 

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