ग़ज़ल - मेरी कलम की खामोशी का एहसास है मुझे
मेरी कलम की खामोशी का एहसास
है मुझे
आज भी तेरा नाम लिखने पर ठहर जाता है
आज भी तेरा नाम लिखने पर ठहर जाता है
जज्बात छुपाने का जज्बा, बेहद है मुझमे
जिक्र तेरा आने पर तमाम बिखर जाता है
जिक्र तेरा आने पर तमाम बिखर जाता है
यादे आ ठहरती है इन आँखों के कोर पर
मेरा चश्म-ए-नम शबनम से संवर जाता है
किस्मत के साजिशो का नाम है ये दुनिया
वो मिले, ना मिले यह सोच सिहर जाता है
बेकली, बेजारी, मुफलिसी, उस पे तेरा गम
मेरे रहन से जो चाहे, बेखौफ गुजर जाता है
तुझ में कुव्वत है चाहे, बिसात उल्ट दे”नादाँ”
बेबसी तेरी सियासत- दाँ- ख़ुदाओं से डर जाता है
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