खुदा का पता क्या पूछ लिया बड़े बेईज्ज़त निकले मैखाने से
हम खींचे है
कमान जमाने से
वो मुब्तिला है आजमाने
में
तमाशाई में हमारा मुकाबिल
कौन
आग लगा मशगुल है आशियाने
में
एक बार आकर यूँ ठहर जाओ
क्या रख्खा है यूँ
आने-जाने में
गर्मिये इश्क में ये
सिलसिला रहे
तू रूठता रहे हर बार
मनाने से
इश्क में दस्तूरे ज़फा
मुक्कमल है
क्या होगा मेरे एक निभाने
से
खुदा का पता क्या पूछ
लिया
बड़े बेईज्ज़त निकले
मैखाने से
अपनी पे हम है ये दुनिया
क्या
फर्क क्या इसके माने न
माने से
सवाल बवाल है फकीरी में ‘नादां’
सियासतदां लगेंगे तुझे मिटाने में
बहुत सुन्दर रचना है जय नारायण जी. बहुत ही सुन्दर. मेरी तरफ से आपको अशेष शुभकामना कि आप और लिखें, खूब लिखें.
जवाब देंहटाएंसादर व सप्रेम.