गीत - इस फागुन में यादें उसकी


इस फागुन में खेलें क्या होली,
रूठी है हमसे वो जो हमजोली
टेसू से दहके थे उसके जब गाल
हमने कानों की जो ठिठोली
फागुन उतरे है मेंरे अंगना
खनके पल-पल उसके कंगना 
सुरमई सी करती बातें
सरमाई सी उसकी बोली
कब बाहों से फिसले मछरी सी
ब तडफे गले लगने को गोरी
गाल ललके खोवा गुझिया सी
आँखे चमके है बिंदिया सी
तन भीगे है 
मन भी है भीगा
नेह से उसके मेरा अंतर सिजा है 
इत झांके है
उत ताके है
आँखे उसकी सब मांगे है
डरती-तिरती चुपके भागे है
हाथों में लिए वो रोरी ......
इस फागुन में यादें उसकी
हमसे पल-पल करे बरजोरी
वो-गोरी ओ-गोरी
धक्-धक् करती धड़कन उसकी
मह-मह करती साँसे
अब सीने से लगने को मचले
कब बिजली सी भागे
उंगली पर आँचल से खेले है
कब के बिछुडे, अब के बिछुडे
आँखों के कोनों से झांके
आँखों के कोरों से पूछे
नेह की डोर कहाँ लागे है
ये पल,
पल-पल भागे है
वो बोले जी ना लागे है
मै कासे कहूं
कैसे ये कहूं 
तुने मेरा पल-पल छीना है 
गिन-गिन सासें छिन-छिन जीना है 
वो-गोरी ओ-गोरी 
मै फागुन का पछुआ हूँ 
तू है फागुन की छोरी 

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