अगज़ल- मेरा बस्तर

Bastar tribe 
सहमा-सहमा सा मेरा शहर है
जंगल भी खून से तरबतर है

चिड़िया गूंगी बहारे बे नजर है  
क्या यही मेरा हसींन बस्तर है

सूरज भी जब सहसा खामोश है
धुवां-धुवां सा ये सारा मंजर है

मुद्दा क्या है हुक्मराँ सब जाने
मजलूमों के हिस्से बस कहर है

कौन रखता है सोच में बारूद
कौन देता जलजलों को खबर है

किस किस ने किरदार निभाये
किस-किस ने खोपा खंजर है

यहाँ के नमक का किस पे असर है
ये जमीन जानती इसे सब खबर है

अजब उसूलों के किताबात है
जो उगाता वो भूख के नजर है 

इन बदनियतों के सब बे-असर है
साहब है पैसा है ना कोइ कसर है

अगर है मगर है सबकुछ जबर है
लाशे बनाती सियासत की डगर है

इतने सवालात अब क्यूँकर ‘नादाँ’
मेरा बस्तर भी क्या अब बस्तर है

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