लुट चुके जो उनकी की शरारत और सियासत में




कोई बताए क्या कसर है  मेरे इश्क-ओ-इबादत में
फर्क करना मुश्किल है उसके इश्क और अदावत में 

खुदाया उसका जादू जाने किस-किस सर चढ बोलेगा  
कासिद भी उतर आया  उस शोख की वकालत में

उसकी मासूमियत के सदके जो मिला पैरोकार बना
बेसबब ये शहर ले जाना चाहे है  मुझे अदालत में 

कोई मुखातिब हो उनसे कोई तो जिरह करके देखो
लुट चुके जो उनकी की शरारत और सियासत में 

अपने दिल ही में रख ज़रा अपना ही हाँथ सुंघिए
बू-ए-खून-ए-तमन्ना आती है आपके हर इनायत में 

बेशाख्ता ये आँखें रुखसार और लब छू डाले हमने
अब कौन माने तुमने शह दी मुझे हर हिमाकत में

उसके उसकावे में इश्क-ओ-गम का दावा कर दिया
किस दम कहे हम ‘नादाँ’ तो लुट गए शराफत में

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