कविता - महुये के फूल



महुये के फूल

साल के फूल

महुये के फूल

तुम्हे खिलना है अनंत तक

मेरे बस्तर में

जरुरत नही गुलाब, चम्पा, मोंगरा तुम्हारी

जिसे लगाना था गुलाब

मेरे बालों में

वह शराब पी कर

मुर्गा बाज़ार में पडा है

आज बाज़ार

कल बीज पंडुम(आम की फसल का त्योहार),

परसों करसाड(मेंला)

उसके बाद बासी तिहार

हप्तों ऑखें और होश नही खुलेंगे

चम्पा, चमेली, मोंगरा के फूल

उम्मीद मत रखना मुझसे

मै तुम्हे सिर में लगाउंगी

झरोखे से इठलाउंगी

गागर सर पर रख

बिना जरुरत, पानी लेने

चुऑ (पानी का सोता) तक जाउंगी

कोइ प्रेम गीत गाउंगी

नही, नही

बस्तर में आयतीत बारुद की गन्ध

सब फूलों की खुश्बु दबा देती है

अब तो फागुन भी       

परसा(पलाश) के केशरिया फूलों के साथ

जंगल में आग ले कर आता है

जंगल में आग के धुयें में हर फूल मुरझाता है

परब, झेला और ददरिया

सारे प्रेम गीतो का दम घुट जाता है

चम्पा, चमेली, मोंगरा के फूल

सुनो पसीनें मे डूब जाओगें

दब जाओगे जरुर

मेरे सर में रखें

खेत, जंगल, देवता और लकडी के बोझ में

सुनो चम्पा, चमेली, मोंगरा के फूल

मुझे जीने दो

गाय-गोरु, खेत, जंगल, देवता और लकडी के बोझ में

सुनो चम्पा, चमेली, मोंगरा के फूल

मुझे तुम्हारी जरुरत नही है

पर

महुये के फूल

साल के फूल

माल्कांगिनी के फूल

मुझे तुम्हारी जरुरत है

तुम खिलना अनंत तक बस्तर में

मेरे और मेरे बच्चों के

पेट भरने के लिये के लिये

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