कविता - जाहिर है हुसैन
जाहिर है हुसैन
(कला के बहाने पत्रिका में बहुत पहले एक कविता पढने के बाद आज)
जाहिर है हुसैन
तुम्हारे बनाये चित्र
करोडों के है
जाहिर है हुसैन
तुम्हारे बनाये गये चित्रों में घोडे है
मर्दानगी के प्रतीक
माधुरी यौवन का प्रतीक है
जे जे स्कुल ऑफ आर्ट
ने तुम्हे चटक रंग
विस्तृत स्ट्रोक
वह 1935 की बात थी
अब तक
गुलामी रंगो मे ढल रही है
तुमने चित्रो में
टेरेसा, लता मंगेशर, इंदिरा
सुफी फना, बका, क़्वाफ
सभी है
जाहिर है हुसैन
तुमने इतिहास में जाकर देखा है
फैज़, गालिब के पास पुरे कपडे थें
प्रजा हिन्दु थी या मुसलमान
या प्रजा नग्न ?
राजा
शाही पोशाक, तलवार
जाहिर है हुसैन
भारत में आस्था जीवन दर्शन है
आस्था मिथक नही
सरस्वती, गंगा, यमुना, लक्ष्मी और दुर्गा
रावण, हनुमान, सीता
कृष्ण, कामधेनु
भारत माता
या तुम्हारी उंगलियॉ
या तुम्हारे पुर्वाग्रह
या विकृत मानसिकता के क्रेता आग्रह
या तुम्हारी सोच
कौन नग्न थे ?
कौन नग्न है ?
जाहिर है हुसैन
उम्र के इस पडाव में
स्तन, निस्तम्ब या स्त्रियॉ
घोडे और स्त्रियॉ
तुम्हारी कला के प्रिय विषय थें
जाहिर है हुसैन
फोर्ब्स तुम्हे भारत का पिकासो कहती थी
फोर्ब्स का भारत दुसरा होगा ?
यह भारत तो नही
कला, पेंटिंग, कला की अवधारणा
दिखती है
लियनार्दो-दा-विंची में
पिकासो की गुयेर्निका में
वेंनगॉग की पोटेटो इटर में
राजा रवि वर्मा का गॉव में
जाहिर है हुसैन
भारत
कोलकाता के टाकिज में लगे
किसी फिल्म की होर्डिगं नही है
भारत में हर किरदार, मिथक या आस्था
चमक दार या बिकाउ नही है
जाहिर है हुसैन
तुमने बनाये
फाइव स्टार होटलों के गैलरी के लिये
करोडों के पैंटिंग
स्तन, निस्तम्ब या स्त्रियॉ
घोडे और स्त्रियॉ
हाथी और स्त्रियॉ
तुम नही बना सके
रेड सिग्नल में भीख मांगते खडे बच्चे की पेटिंग
कालाहांडी के आकाल की क्रुरता
जेसिका, प्रियदर्शनी मटटु की पेटिंग
फाइव स्टार होटल के कचरे में
खाना तलाशते भुखे बच्चे की पेंटिंग
जाहिर है हुसैन
भुख, रोटी, गरीबी
शोषण और विषमता से दुर
तुम्हारे सामाजिक सरोकार
हिरोइनो और घोडो के पिछवाडों से है
तुम्हारी अतंश्चेतना को कितना भय था
दोजख, या जन्नत का
जाहिर है हुसैन
सच है हुसैन
तुमने कहा था
भारत छोडने का दर्द तुम्हे कम
तुम्हारे लिये छाती पीट्ने वालों को
ज्यादा है
हे कतर के नागरिक सुनो
कम से कम तुम
ना तुम जन्म से भारतीय थे
ना एक पल को भारतीय हो सके
जाहिर है हुसैन
तुम हुसैन नही
हुसैन एक त्याग एक बलिदान, समर्पण, श्रद्धा
और एक सम्मान का नाम है
जाहिर है हुसैन
तुम एक मह्ंगे आर्टिस्ट-विद-पॉलिटिक्स हो
90 के उम्र में
पेंटिंग नही त्याग सके
इसीलिये
तुमने आसानी से देश त्याग दिया
तुमने पह्ले रेप ऑफ इंडिया बनाया था
तुम रेप ओफ कतर नही बना पाये
जाहिर है हुसैन
तुमने सिद्ध कर दिया
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का अर्थ
अवसर के साथ-साथ बदलता है
जाहिर है हुसैन
किसी भी वाद, किसी भी पंथ से परे
मै कहना चाहुंगा
तुम हिन्दुस्तानी नही थे,
तुम हिन्दु नही थे
जाहिर है हुसैन
तुम मुसलमॉ भी ना हो सके
एक सच्चे मुसलमान
मुकम्मल ईमान के साथ
रहे ना आखिर
आर्टिस्ट-विद-पॉलिटिक्स
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