ग़ज़ल - मुझे भी संकुं रहे मै तंगदिल ना हुआ


Jaynarayan Bastriya
वो दोस्ती  के कभी काबिल ना हुआ
जिसे वक्त पे खंजर हांसिल ना हुआ 

जिस काँधे का बहुत भरोसा था मुझे
वही मेरे जनाजे पे सामिल ना हुआ       

चलो कुछ इल्जाम मै भी मान लेता हूँ
मुझे भी संकुं रहे मै तंगदिल ना हुआ 

मेरे रहन में जमा तमाशाबीन भीड़ थी
वही कहते है यार ये महफ़िल ना हुआ 

अदावत करता रहा पूरी जिंदादिली से
दोस्तों की दोस्ती में गाफ़िल ना हुआ  

पंख फैलाये जो आसमां से उफ़क तक
मेरा वजूद वो इक अबाबील ना हुआ 

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