चंद शेर .......
मेरी प्यास इक
नदी से बड़ी है
तू सावन है
किसी ने बताया मुझे
पांवों छालों
की बरात लिए फिरते है लोगो हम
हमारे दामन पर
वक्त की खाराश गिन कर कभी
काँटों ने भी हमसे
उलझाना मुनासिब नही समझा
तेरे
इन्कार-ए-वफा की वहशत देख
रौशनी से लडती
रही है मेरी परछाई
मेरे सदाओं में
लफ्ज़ की सूरत
तुझे पुकारे तो
किस सुरत बता
खुद को फरेब
देने का हुनर हमसे सीखें कोइ
गैरों को फरेब
देना इस दुनिया का हुनर है
नर्म लफ्जों के
घावों के कायल हम नही
खुल कर जज्बात
यूँ दिखाया करो कभी
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