तेरे गम ने न रख्खा बे-सहारा मुझको
तेरे गम ने न
रख्खा बे-सहारा मुझको
ये बात और है
कब मैंने पुकारा तुझको
शबनम की बूंद
सा कुछ पल चमकूंगा
सूरज ने जब तक
ना निहारा मुझको
बग़ावत करेगी अब दरिया किनारों से
उस सावन ने
किया ये इशारा मुझको
दरख्तों के
जिस्मों में खुदे नामों सा
इस दिल में मैंने
यूँ है उतारा तुझको
तेरे बज्म में
मेरे अशआर थम जाए
अता कर कभी तो
ये नजारा मुझको
उम्मीद-ओ-वफ़ा
में तमाशा बनाकर 'नादाँ’
हर दर्द ने एक
दर्द सा उभारा मुझको
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