मेरा वजुद
मेरा वजुद
सूख रही नदी के रेत के नीचे
पानी सा पल रहा है
उपर कहीं तुम
परदेशी
सुरज से इरादे लिए
लावे सा बहते रहो
तकते रहो मेरी
बस एक चूक
पर देखना
देखना इक दिन
रेत के नीचे का यह पानी
नदी के दोनो किनारों में
जंगल उगा लायेगा
हरा-भरा
देखना सम्हलना
देखना
इस जंगल की जड़ें
तुम्हारे आँखों के नीचे
लपलपा रहे रेगिस्तानी इरादों
को जकड़ सकती है
तुम्हे लकवाग्रस्त कर सकती है
.........जयनारायण बस्तरिया
सूख रही नदी के रेत के नीचे
पानी सा पल रहा है
उपर कहीं तुम
परदेशी
सुरज से इरादे लिए
लावे सा बहते रहो
तकते रहो मेरी
बस एक चूक
पर देखना
देखना इक दिन
रेत के नीचे का यह पानी
नदी के दोनो किनारों में
जंगल उगा लायेगा
हरा-भरा
देखना सम्हलना
देखना
इस जंगल की जड़ें
तुम्हारे आँखों के नीचे
लपलपा रहे रेगिस्तानी इरादों
को जकड़ सकती है
तुम्हे लकवाग्रस्त कर सकती है
.........जयनारायण बस्तरिया
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