काफ़िर कहना मुझे जायज है ......
तुझ से ये दूरी भी अजाब है
तेरा पास होना भी बेकली है
तेरा पास होना भी बेकली है
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sabhar -desh |
मेरी मजबूरी की हद कितनी
दिल पे बस दिल की चली है
पुरे दिन सूरज से उलझा रहा
शाम है के अब आकर ढली है
मसरूफ़ है हम तन्हाई में अपनी
हम पे कब हमारी ही चली है
तू हयात तू दहर तू आरजू
तेरे बाद ही अली है वली है
काफ़िर कहना मुझे जायज है
दिल खुदा है दिल की भली है
ख्वाहिशों उजालो की साजिशे
हमारी दुनिया अंधेरों पली है
ठोकर बेरुखी बदनीयत भरी
‘नादाँ’ दुनिया कितनी भली है
........ जयनारायण “नादाँ”
बस्तरिया
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