ग़ज़ल - ज़िद है अब हर ज़िद से टकरा कर देखेंगे
जब अँधेरे ढक रहे सूरज के
उजाले को
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साभार - बचेली बचेली |
आओ एक नई रौशनी उगा कर
देखेंगे
पुर्ननवा पत्तों को जब जला
रही ये हवा
आओ अपने साँसों से महका कर
देखेंगे
उग रहा है साज़िशो का जंगल
वतन में
चलो जज्बे का दावानल जला कर
देखेंगे
निज़ामे-मुल्क संवार नही
सकते किस्मत
अब अपने हांथों की लकीरे
बना के देखेंगे
बद्दुआ देना हर मसले का हल
नही ‘नादाँ’
ज़िद है अब हर ज़िद से टकरा
कर देखेंगे
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