ग़ज़ल - देखना हम भुखे कब इन्कलाब ले आयेंगे

खून में साँसों में इक इज्तेराब ले आयेंगे
हम हर प्रश्न का, एक जवाब ले आयेंगे

by Google 
कब तक बंद करोगे ये दरवाजे खिड़कियाँ  
देखना हम नई रोशनी नई आग लेआयेंगे

खामोशी को गुश्ताखियों की जबां न कहो
देखना हम भुखे कब इन्कलाब ले आयेंगे

सूती के कपड़ो में जहां उगती ये लडकियां
वहां नीद ना हो पर हम ख्वाब ले आयेंगे

वक्त नजरअंदाज करता रहे हमारा वजूद
तो उपरवाले से अपना हिसाब ले आयेंगे

ये निज़ाम ये सरमाएदार काबिल है सब
क्या ये आईने को कभी जवाब दे पायेंगे  

रास्ते तराशना जिनकी फितरत है ‘नादाँ’
वो पत्थरों में फूल और शबाब ले आयेंगे

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वजह -ए-दर्द-ए-जिंदगी

कविता - कविता नागफनी हो जाती है

ना खौफ़-ए-दुनिया है मुझे ना खौफ़-ए-खुदा सा लगे है