कविता - दंतेवाडा में ( नडगु के साथ पॉचदिन गुजारने के बाद )

उस गाँव में
( नडगु के साथ पॉचदिन गुजारने के बाद )
मुझे लगा
सब कुछ हम पर उनका
उधार है।
ब्याज मुल से कही अधिक,
कई गुना अधिक।
नड्गु के मन में मचल रही थी
इतनी लम्बी अंतरंगता के बाद भी
मेरे लिये, बहुत सी बातें।
कुछ गलत तो नही था वो,
नड्गु लिख सकता तो लिखता
बस्तर पुरा लिख सकता, तो जरुर लिखता।
मेरे विरुद्ध कुछ......
तुम्हारे पॉच सितारा
भावंनाओं के समस्त सरोकारों से
दुर कही
बस्तर में हमारा जीवन
गुफ्फा दादा (नक्सलाइट)
और पाइक (पुलिस)
के दो पाटो में पीस रहा
जबरजस्त
हमारा जीवन, जो
बस्तर में बन रहे भवनों, सडकों,
कागजी योजनाओं की तरह
गैर आपत्ति का विषय है
हमारा वजुद, हमारी स्थिति, नियति
इन सबका नियति
तुम हमे गिन सकते हो
जनगणना के प्रपत्र ‘द’ में
तुम हमे पहचान सकते हो
छ्त्तीसगढ टुरिज़्म के पाम्पलेट में
तुम हमें देख सकते हो
एंथ्रोपॉयलोजी के संग्राहलय में
हमारा जीवन, हमारी संस्कृति
हमारा गीत, हमारा संगीत
हमारा कोरस। हमारे राग, अनुराग
हमारे रोष, आक्रोष के उपर कही
आपके मोटलों में
आपका छुट्टी का दिन बहुत अच्छा गुजरेगा
कार्यशालाओं, परिचर्चा, पी.एच.डी.
का गम्भीर विषय है हम
समय मिले तो देख सकते है
इन्द्रावती अभ्यारण, कांगेर अभ्यारण में
झरनो के कल-कल, और मन के हल-चल
के बाद
समय मिले तो देख लेना
अभ्यारण के जानवरों के बाद
आप हमे पह्चान सकते हो
हम वोट डालने की गुंगी मशीन है ।
हम वर्गो, सब्सिडी, आरक्षण और
हमारे अधिकार के विज्ञापनों के
शतरंजी बिसात की गोटी है।
बस्तर के वन, खनिज और मनोरंजन के बाद
हम ।
तुम्हारी दुनिया में
बेकार बुजर्गो की सा
है हमारा जीवन
यह बात भी सही है
सभ्यता, सभ्य लोगो से पहचानी जाती
और हम ?

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वजह -ए-दर्द-ए-जिंदगी

कविता - कविता नागफनी हो जाती है