विचार - शिक्षा जगत की खमिया - हम साक्षर हैं लेकिन शिक्षित नहीं


शिक्षा जगत की ख़ामियां  -  हम साक्षर हैं लेकिन शिक्षित नहीं  

शिक्षा मानव एवं देश के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। शिक्षा से व्यक्ति सभ्य नागरिक बनता है व सभ्य नागरिक सभ्य समाज का निर्माण करता है। मै एक बात का उल्‍लेख करना चाहुंगा भारतीय विद्यालयीन शिक्षा प्रणाली की गुणवत्ता पर आधारित एएसईआर के एक अध्ययन से पता चलता है कि 38 प्रतिशत बच्चे छोटे-छोटे वाक्यों वाला पैराग्राफ नहीं पढ़ सकते और 55 प्रतिशत सामान्य गुणाभाग नहीं कर सकते. बुनियादी शिक्षा में विस्तार तो हुआ है लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की चेष्टा तक नहीं हुई है शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे एक ग़ैर सरकारी संगठन कह्ते हैं कि ग्रामीण भारत के सात लाख बच्चों और पॉच लाख से अधिक घरों के सर्वेक्षण में मिले आंकड़े एक कड़वी सच्चाई बयान करते हैं. बच्चे स्कूल तो जा रहे हैं पर वे पढ़ लिख नहीं पा रहे हैं. वे गणित के आसान सवाल भी नहीं सुलझा पा रहे हैं. वे कहते हैं कि देश के अन्य राज्यों के ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों में ऐसा सुधार नहीं आया है. देश में केवल 56 फ़ीसदी शहरी बच्चे एवम 42 प्रतिशत बच्चे ही ऐसे हैं जो सही मायने मे अपनी कक्षा के अलावा दूसरे कक्षा की किताबों को धाराप्रवाह रूप में पढ़ लेते है । एक शिक्षक होने के नाते मैने अनुभव किया है की शिक्षा में संसाधनों की कमी, व्‍यवस्‍थाओ का धरातल तक नही पंहुच पाना, शिक्षा जगत में भ्रष्‍टाचार, गुण दोष के आधार पर सजा या पुरूस्‍कार की व्‍यवस्‍था का ना होना, नीतिगत स्‍पष्‍टता का ना होना यह व्‍यवस्‍थागत कमियॉ है वही दुसरी तरफ शिक्षक का प्रशिक्षित ना होना, शिक्षा नीति का ज्ञान ना होना, शिक्षासंहिता का जानकारी का अभाव, शिक्षा से जुडे अधिनियम, बालमनोविज्ञान का ज्ञान की कमी, शिक्षा के विकास के प्रति समर्पण या आस्‍था का ना होना  शैक्षणिक गुणवत्‍ता की कमी का कारण बनती है जिसके लिए शिक्षक की स्‍वयं जिम्‍मेदार है ।

लम्‍बे समय के ल्‍क्ष्‍यविहीन प्रयास से स्कूलों की दशा और दिशा में संख्‍यात्‍मक सुधार तो आया है और लोगों का स्कूलों के प्रति नज़रिया भी बदला है. लोग स्कूलों की ओर आकर्षित हो रहे हैं. आंकड़े सरकारी ही नहीं बल्कि निजी स्कूलों के आंकड़े भी ऐसे ही हैं. इसलिए अब समय आ गया है कि आंकड़ों से इतर बेहतर गुणवत्‍ता आधारित शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया जाए ।


टिप्पणियाँ

  1. बुनियादी शिक्षा में विस्तार तो हुआ है लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की चेष्टा तक नहीं हुई है ..............स्कुल भवन है शिक्षक है खर्चा है पर..........पढाई की गुणवत्ता का पता नही |

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वजह -ए-दर्द-ए-जिंदगी

कविता - कविता नागफनी हो जाती है