गीत -- ठहर जा ए मेरे अरमां अधूरी ये कहानी है ..एक

वो सुखी नदी की बैचेनी, कसमसाता मेरी आँख का पानी है
ठहर जा, ए मेरे अरमां, अधूरी ये कहानी है
उफ़क से उठती धूल कहती है, ये सूरज सारा दिन उबलता था
धुप के सूखे पेशानी में, हर बूंद पल-पल मचलता था
वो गुजरे करीब से और मेरा दिल दहलता था
इधर बढ़ती थी मजबूरी, उधर वो केशर सा खिलता था
कुछ चर्चे कुछ गुफ्तगुं , वो जो चाहे वो मिलता था
वो चाल चलता था , सारा शहर हम पे बदलता था
दिल की मानु तो तो चुप रहूँ या ये दुनिया को बतानी है
ठहर जा, ए मेरे अरमां, अधूरी ये कहानी है 
वो झांकती आँखे जुल्फों से, कुछ नेजों नश्तर सी 
वो रफ्ता-रफ्ता नज़रे उठाना फिर जम कर बरसना 
उनमें कुछ तेज़ाब, कुछ नूर, कुछ सोजें जवानी थी

ठहर जा ए मेरे अरमां  अधूरी ये कहानी है 

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