कुछ रुबायत - कुछ रुबाइयां



तुम भी होगे ये हंसी रात भी होगी
तुम्हें मन्जुर हर बात भी होगी
अभी तेरी मासूम चुप ही सही हैं
उम्र आयेगा तो वो बात भी होगी 
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मैं हवा हू मुझे बिखरने से ना रोको कोई
पहली बरसात हू बरसने से ना रोको कोई
बुन्द -बुन्द हर  रग रग में समा जाउगां
अपनी हद से मुझे निकाल फेको तो सही 
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सारा उसुल जब तबाह हो जाता है
कोरे मन का कागज स्याह हो जाता है
इश्क होता है हर तहजीब से परे
उम्र आती है ये गुनाह हो जाता है
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