कविता - राजनीति प्रयोग के दौर का नाम है

नकाब 
ये क्या कर रहे हो यार ?
नकाबो के पिछे चेहरे मत ढुंढो 
चेहरों के पीछे छिपे नकाबों को देखो 
जरुरी नही आदमी का चेहरे के पीछे 
आदमी हो 
हो सकता है 
सरकार हो ! राजनीति हो 
कोई वादा भी हो सकता है 
नकाब मत खोलना 
सबकुछ इस तरह  से व्यवस्थित है 
तुम्हे किसने कहा ? 
तुम पुर्व अवगत हो ... 
यह तथ्य मायने नही रखता
सच
लोकतंत्र जनपदो के इतिहास से 
से पुर्व से चल रही प्रक्रिया है 
जो जारी है । 
तुम सिर्फ पांच वर्षो में 
सबकुछ पाना चाहते हो 
पांच वर्ष मे ही संसद को 
आज़माना चाहते हो 
राजनीति प्रयोग के दौर का नाम है 
कुछ सौ वर्षो मे हम 
अपने सुखों के सैलाब के बाद 
भारत से गरीबी ना सही 
गरीब को दुर कर् देंगे ।

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