कविता - मेरी कविता एक विद्रोह है

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कविता विद्रोह
मेरी कविता एक
विद्रोह है
विद्रोह
पाषाणयुग से विस्थापित
विचारों का
आज
प्रांसगिक होना
शहर की हर गलियों में
बिखरे होना , बढते बच्चो के
बिखरी सी भदेस
मुस्कानों में
यु एस वी कारों के काले सीसों से झांकती मुस्कुराहटों में
सदन की छाती छिल कर बाहर निकलते
भुख मजबुरी के सौदागरो
मुस्कानों में
इसी मुस्कुराहट के
प्रति
एक विद्रोह है
मेरी कविता एक
विद्रोह है
विद्रोह
मेरी अपनी कविता,
अपनी नपुंसक कमियों
को छिपाकर
भीड का सहारा लेकर
अपनी पौरुषाता को
प्रदर्शित करने वाले
अर्जुनो के प्रति,
सभी दर्दो को ढोकर
मुझे अश्वथामा नही बनना
तभी तो तेरी कविता
विद्रोह करती है
सारे छदम क़ृष्णों से
जो
हर रात रचते है
एक नया महाभारत
सुबह जिसका मंचन
किया जा सकें
हमारी सुखी पिंजर सी
छतियों
को रौद्तें हुऐ,
मेरी कविता एक
विद्रोह है
एक विद्रोह
हमारे मस्तको में
खिचें
भाग्य की समस्त
लकीरों को मिटाकर
नयें वाद की रचना
कर्ने वालें
नववादिंयों के
विरुद्ध
मेरी कविता एक
विद्रोह है
विद्रोह
लक्षम्णपुरबाथे गाँव
कि गलियों में
बिछे शतरज के बिसात
में
गिरी अंठावन गोतियों
के आसपास
उतारे सांपो के
केचुलों से
विद्रोह...........विद्रोह..........
एक विद्रोह
गुजरात डांग में जले
सारे झोपडियों
या उडीसा का
कालाहांडी
या बस्तर के जंगल
या सलवा जुडूम का
केम्प
के साथ
सब के सब का
व्यापारी होना
संवेदना का
सीसा
हमारी कानो
में.......
राजनीति और अर्थनीति
के नकाब के नीचें
तलाश किया तुमने
पीले पन्नो में
काले अक्षरो को सजा
कर बेचने वालो
मेरी कविता विद्रोह
करती है
तुम सब से विरुद्ध
रहती दुनिया तक
तुम्हारे
हमारे
सभी रास्ते
अलग अलग है

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