नादाँ' ये दुनिया नादाँ नही
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जय बस्तरिया - इक शाम |
हम कुछ काफ़िर ही सहीं
पर तू भी कोइ खुदा नही
फितरतन तूम पत्थर हो
आदतन हम भी जुदा नही
जुस्तजू क्या फकीरों की
ये दीवार पर लिखा नही
ये अदावत शिद्दत से की है
ज़ख्म बिना जुनू उगा नही
जब्त लाज़िम पर कब तक
ये बस्ती घर पूरा लुटा नही
सियासत में सब शरीफ है
नकाब चेहरे से उठा नही
बसीरत सीरत अलग ही है
सियासत शर्म में डूबा नही
पत्थर के दीवार से है हम
पीपल अब तक उगा नही
'नादाँ' ये दुनिया नादाँ नही
कोइ किसी का सगा नही
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