तुझसे क्या कहूँ ..........
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साभार |
उसने कुछ तो मेरी इबादत को नज्र किया
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किस भरोसे सफ़र का अंजाम करोगे नादां
तेरे रहनुमां ही तेरे राह के पत्थर बन गए
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वक्त के सैकड़ों इम्तहानों की सिला है'नादाँ'
हमें भी ठोकरें खाने की ये अदा आ ही गयी
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हंगामा ये है हमारी आदतें शहर से कुछ जुदा है
तहजीब-ए -इंसा यहाँ रस्मों रिवाज़ की बात नही .
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गुजरे दिनों के हर कसक की तसल्ली के लिए
आज भी तेरी गली का फेरा अंजाम कर लेते हैं
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