तेरी वहशत मुझे बहलाती है


दिल रोता आँखें मुस्कुराती है
जिन्दगी कितना आजमाती है

इश्क या रोटी यूँ  ही बेसबब
हर सांस, भर सांस रुलाती है

मेरी मुफ़लिसी है सारा मुद्दा
फिर दुनिया किसे निभाती है

वक्त  ने हर वक्त ठुकराया
अब किस्मत भी तरसाती है

सब ख़्वाब हमने जला डाले
अब नींद  हर शब आती है

तेरे इश्क  के बाद बस तू है  
तेरी वहशत मुझे बहलाती है  

क्या गिले क्या शिकवे ‘नादाँ’
खाकसारी इतना सिखलाती है


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वजह -ए-दर्द-ए-जिंदगी

कविता - कविता नागफनी हो जाती है

ना खौफ़-ए-दुनिया है मुझे ना खौफ़-ए-खुदा सा लगे है