कुछ शेर ...............





कुछ शेर ...............


तेरी नियत फरेब है मेरी तुझपे ऐतबार
देखें ये तिजारत चलती है किस तलक 
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बहुत मुतमईन हूँ मै अपनी बरबादी पर
वो सितमगर अपना ही है कोइ गैर नही 
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एक खुली किताब हूँ हर वर्क है यूँ खुला-खुला,
 सब तस्वीरें देखते रहे बस पन्ने पलट-पलट कर
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हमको दिए जख्मों का हिसाब फिर कभी पूछ लेना
अभी पूछो दिल में कितनी जगह बेखरोंच बाकी है  
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सर्द तन्हा राहों और वक्त के इम्तहानों के बाद
तेरी यादों ने फिर मेरी मंजिल का पता याद किया 
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ये मौसम भी बेइमां है ये हवायें भी कुछ-कुछ
देखतें है नकाब तेरी हया रोकेगी कब तलक
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वो दुनिया की बात करते हैं . हम इस दिल की
हमारी मंजिल करीब है उनका सफर अभी बाकी
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तुझसा ही यूँ तल्ख मिज़ाजी है शहर तेरा
हर ठोकर पर पूछे है कहीं लगी तो नही  
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मेरे राह की ठोकरे मुझे होश में लाये रखती है
मेरी आवारगी मुझे कब होशोहवास आने दिया 

'नादाँबस्तरिया

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