कविता - बड़े शातिर है वो सब.....


बड़े शातिर है वो सब ...
सत्ता, शासन और व्यापार के पैरोकार ..
वो हमें पेट और पीठ तक ही व्यस्त रखने की साजिश में सफल है,
जबरजस्त सफल है 
वे 
हमारे पेट की आग को दिमाग़ तक पहुँचने से रोकने में |
उन्हें मालूम है यह दर्द पेट से दिमाग़
दिमाग़ से होकर बाहों तक पहुँचते पहुँचते
बारूद में बदल जाता है |
उन्हें मालूम है यह आग
पेट की आग की जारज, बारूद
उनके अपने सपोलो के अच्छे कल के लिये
अच्छी नही है ये आग
ये आग, उनकी पांच सितारा जिन्दगी में आग लगा सकती है
बड़े शातिर है वो सब ...
वो सफल है हमारे पेट और पीठ को दिमाग बनने से रोकने में
वो साजिश में सफल है, अब तक
पर कब तक ? पर कब तक ?
आखिर कब तक ?............................

मेरे संकलन आखिर कब तक से - जयनारायण दंतेवाडा |

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