कविता - चलो लौटते है अपने जड़ों की ओर



जड़
जब विचार वस्तु बन जाए 
तब
कितनी अलोनी होती है
संवाद की भाषा
कब
बाजार से बाजार तक
जब
विज्ञापन दर विज्ञापन
बस
उपर सिर्फ उपर
व्यवस्था के विष वृक्ष की  
कैनोपी पर फैली हो
जब
संवाद सिर्फ अपने-अपने जात में
जब
संवाद सिर्फ अपने घात में
तब
चलो लौटते है अपने जड़ों की ओर 
अब
जड़ो से जुड़े रहने का
सुख
हमें जड नही होने देगा 

 
" जयनारायण बस्तरिया "







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