कुछ रुबायत



















रुबायत ......



दर्द  हम अपना, कुछ इस कदर  बांटते है
सपने आँखों में लिए यु सारी रात काटते है
सदाये लौट आती है, मेरी वहाँ उस मोड से
जहां  तेरी  आँखे, मेरी आवारगी ताकते है

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ना आँखों में दर्द है, ना होंठो में दुआए है
हमने अपनी हंथेली पर कांटे जब उगाए है
बंद  गलियों से टकरा कर लौट आती  है
मुझसे कही  मजबूर तो ये मेरी सदायें है
         
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