वजह -ए-दर्द-ए-जिंदगी
कहते हैं मोहब्बत दिल के किस्सों की किताब है
उसका सफा चेहरों की ज़रूरत को मुख़ातिब था
तू कातिब है मेरी किस्मत के फरेबों का ओ खुदा
तू क्या जाने हर खेल मेरा खुद के मुख़ालिफ़ था
ता उम्र तलाशा किया मैंने वज़ह-ए-दर्द-ए-जिंदगी
क्या खूब ये दर्दे इश्क़ ही हर दर्द का मुहाफ़िज़ था
जिंदगी थी आवारगी या आवारगी जिंदगी बन रही
बेपता मंजिल थी मेरी ये सफीना खुद मुसाफ़िर था
तेरा रूह इश्क़ के इबादत-ओ-सज़दे में था 'नादाँ'
नसीब फ़रेब-ए-हुस्न की अक़ीदत से मुनासिब था
#jnb #नादाँ_बस्तरिया ©
30 जुलाई 2020
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