मेरा जेहन-ओ-चेहरा अखबार हो गया


ये गम-ए-रोजगार से लाचार हो गया
मेरा जेहन-ओ-चेहरा अखबार हो गया

लादे फिरता हूँ मै जख्म पुरे पीठ पर
मिसाल-ए-दोस्ती का किरदार हो गया

तरक्की पसंद सरकार  मेरी सरपरस्त
अब तो भूख रोज़ का बाज़ार हो गया

शौक़ और जरूरत के फासले कम हुए
आदमी नियत से ही बीमार हो गया

अनार के दरख्त से भरा ये गाँव मेरा
कबका नागफनी का तरफदार हो गया

अपने किरदार पर गरूर है ’नादाँ’ मुझे
दर्पण दिखाने का जो तरफदार हो गया  

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