अगज़ल - वो मोहसिन हम उसके हबीब ‘नादां’

अपने वादे पे  आये तो बात बने
वो भी कभी निभाए तो बात बने

इश्क और चांदमारी दीगर बात है
हुजूर को समझ आये तो बात बने

मुनासिब वजह नही ये रुसवाई की
मुकम्मल खता बताए तो बात बने

ये मुख़्तसर सा फ़साना है निभाना
वो कुछ दूर तक आये तो बात बने

जुल्फों तक हदबंदी है इन हांथो की
रुखसार तक पहुँच पाए तो बात बने

वो मोहसिन हम उसके हबीब ‘नादां’
वो कभी नजरें झुकाए तो बात बने

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