विचार - वर्तमान शिक्षा नीति – इस नीति का नियत देश की नियति के लिए ठीक नही
वर्तमान शिक्षा नीति – इस नीति का नियत देश की नियति के लिए ठीक नही
सन 1976 के संशोधन द्वारा शिक्षा को समवर्ती सूची में डाला गया तब से
लेकर 1986 में बनी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1992
का संशोधन 2004 में केन्दिय शिक्षा परामर्शदाता समिति, दसवी पंचवर्षीय योजना में गुणवत्ता
को लेकर कर जनसंख्या शिक्षा, पर्यावरणउन्मुखी
शिक्षा, विज्ञान शिक्षा में सुधार, योग शिक्षा जैसे विषय सामिल किये गये यह शिक्षा
के क्षेत्र के जरुरी सुधार थे लेकिन इन अपेक्षित सुधारों की गति काफी धीमी थी।
1992 संशोधित नीति में एक
ऐसी राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली तैयार करने का प्रावधान है जिसके अंतर्गत शिक्षा
में एकरूपता लाने, प्रौढ़शिक्षा कार्यक्रम को जनांदोलन बनाने, सभी को शिक्षा सुलभ कराने, बुनियादी (प्राथमिक)
शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखने, बालिका शिक्षा पर विशेष जोर
देने, माध्यमिक शिक्षा को व्यवसायपरक बनाने, शिक्षा परिषदको सुदृढ़ करने तथा खेलकूद, शारीरिक
शिक्षा, योग को बढ़ावा देने एवं एक सक्षम मूल्यांकन
प्रक्रिया अपनाने के प्रयास शामिल हैं। कुल राष्ट्रीय आय का कम से कम 6 प्रतिशत
धन शिक्षा पर व्यय की योजना थी। प्रश्न यह है की 1992 की नीति को कितना
अमलीजामा पहनाया गया परिणाम तुल्नात्मक रूप से कितने असरकारी रहे, ग्रामीण
क्षेत्र तक योजना किस रूप में पहुंची यह विचार का विषय है। ब्लैकबोर्ड आपरेशन,
शिक्षक सामाख्या, शिक्षागारंटी, साक्षरता , प्राथमिक शिक्षा मिशन जैसे विशाल बजट
वाले कार्यक्रमों का शिक्षा पर संख्यात्मक प्रभाव तो पडा किन्तु शिक्षा के स्तर
पर एवं गुणवत्ता पर कोई उल्लेखनीय प्रभाव नही पडा।
अनुच्छेद 21 ए को संशोधित करके शिक्षा को मौलिक अधिकार बना के अनुरूप
अप्रैल 2010 को नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम पूर्ण रूप से लागू हुआ। इस अधिनियम के तहत छह से
लेकर चौदह वर्ष के सभी बच्चों के लिए शिक्षा को पूर्णतः मुफ्त एवं अनिवार्य कर
दिया गया है। अब यह केंद्र तथा राज्यों के लिए कानूनी बाध्यता है कि मुफ्त एवं
अनिवार्य शिक्षा सभी को सुलभ हो सके। भारत जैसे देश के लिये लिये इस अधिनियम की
जररूरत या अनिवार्यता को शिक्षा के कर्म
से दिल से जुडा एवं सर्वहारा वर्ग के हितों को समझने वाला व्यक्ति अच्छी तरह
जानता है। वास्तविक स्थिति में कितने
राज्यों ने इस अधिनियम को किस किस रूप में जारी किया। शिक्षाके नीति नियन्ता,
शासन, शासकीय विभाग, गैरशैक्षिक कर्मचारी एवं शिक्षक इसके प्रावधानों को जमीन तक
लाने में कितना सार्थक भुमिका का निर्वाह कर रहें है, समाज एवं पालक की भुमिका
अपने सक्रिय सहभागिता एवं लोक दायित्व से दुर होना का कारण कही यह शिक्षा नीति है
। शिक्षा
नीति का मूल उद्देश्य राष्ट्र निर्माण, कर्तव्य बोध, नैतिक मुल्य,
चरित्रनिर्माण एव सक्रिय पुरूषार्थ के साथ शिक्षा होना चाहिए । आज शिक्षा नीति का निर्धारण पूंजीपतियों एवं किसी
विशेष राजनैतिक विचारधारा के प्रति आस्था रखनें के हाथों में है, जिनका अनुभव यथार्थ से नहीं जुड़ा है. गरीबी से दूर यह
वर्ग विश्वस्तरीय शिक्षा के नारे की गूंज में भूल जाता है कि किसी भी देश में
शिक्षा नीति की प्राथमिकता देश के सामाजिक-आर्थिक संदर्भ में होनी चाहिए.
विकासोन्मुख देश के यथार्थ से अलग रखना घातक है. यह लोग भूल गये हैं कि भौतिक
सुविधाओं से शिक्षा का स्तर नहीं उठता बल्कि मौलिक व नैतिक आदर्शों से बनता है. पर
अफसोस हम इससे दूर हो गये है।वस्तुतः हमारी वर्तमान शिक्षा पद्धति का आधार मैकाले की
औपनिवशिक शिक्षा नीति है। मैकाले की शिक्षा नीति का राष्ट्र की अवधारण
से कोई सम्बन्ध् नही था अत: आज शिक्षा नीति के दिर्घकालिक परिणामों के विस्तत
अध्ययन कर शिक्षा नीति में व्यापक एवं परिणाम मुलक परिर्वतन की जरूरत है ।
हमारी वर्तमान शिक्षा पद्धति का आधार मैकाले की औपनिवशिक शिक्षा नीति है। मैकाले की शिक्षा नीति का राष्ट्र की अवधारण से कोई सम्बन्ध् नही था अत: आज शिक्षा नीति के दिर्घकालिक परिणामों के विस्तत अध्ययन कर शिक्षा नीति में व्यापक एवं परिणाम मुलक परिर्वतन की जरूरत है । ......सचमुच में यह जरुरी है |
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