कविता - रंगमंच का निहितार्थ
दुनिया
राजनीति
लोकतंत्र
एक प्रपंच है
या एक रंगमंच है
इस रंग मंच के भीतर
हमारे रंग मंच की तरह
पर ? दुनिया, राजनीति,
लोकतंत्र में
एक ही संवाद के
निहितार्थ
समय-समय पर
समय देख-देख कर
अलग-अलग
इस रंगमंच का हर पात्र
पुरी तरह मंजा हुआ
इसके रंग तत्व
रंग शैली
अबुझ
इसकी नित्य नवीन
सृजनात्मकता
इसकी सार्वभौमिकता
सार्वकालिकता निर्विवाद है
इस रंगमंच का
दर्शक भी मै, पात्र भी मै
यह ठीक नही है
यह कल ठीक नही होगा
ये कहॉ का न्याय है
जो मै
मंच का हिस्सा होकर भी
रिक़्त दर्शक दिर्घा में बैठा
पल-पल नव कथानक
पल-पल निर्थक पटाक्षेपों
के अंतराल में
सीधे-सीधे
पर्याय तलाशने का जद्दोजहद में
सदियों से सदियों तक
बैठा रहुं यहीं
निर्थक दुनिया,
राजनीति, लोकतंत्र और्
अधिकार के रंगमंच का
प्रपंच देखते हुये
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