गीत - ठहर जा, ए मेरे अरमां, अधूरी ये कहानी है - चार
ठहर जा,
ए मेरे अरमां, अधूरी ये कहानी है
वो हीर वो सोहनी वो लैला, बस ज़ुबानी है
किस्सा-ए-वफा की ये मिसालें,
ये किस्सों की बाँतें है
कौन कहता है हुश्न को ये सब
निभानी है
तकल्लुफे हुश्न पर अब इश्क चलता था
साफ़ जाहिर थी वो बैचेनी, वो पहलू बदलता था
उसकी मजबूरी थी या वो यूँ भी चाल चलता था
कभी आँखे मिलाता, कभी आँखे बदलता था
कभी आँचल गिराता था, कभी गिरा कर सम्हलता था
वो उम्र-ए-दौरां थी, क़यामत हरपल मचलता था
वो आँखों के कोरों का पूछना, वो भौहों की तीरगी कैसी
वो दूर जाकर मुड़ कर देखना, पास वो बेहद बेरुख़ी कैसी
वो पत्थर की मूरत से, ये मेरी बंदगी
कैसी
दुश्मन-ए-जाँ से दिल्लगी कैसी
लुट कर मेरा सकून-ओ-जहां
अब वो ही कहते हो ये क्या किस्से कहानी है
ठहर जा,
ए मेरे अरमां, अधूरी ये कहानी है
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