कविता - सुभागी (उसे भी पता नही किसने ये नाम रखा )
नये-नये उभरते महानगर
रायपुर की
एन एच 5 की ठंडी सड़क
८६ लाख की ऑडी S6 कार
पांच सितार होटल से लौटते,
देर रात
अति सभ्य युवाओ के अतिशालीन
असीमित, चुहलबाजियों सहित
ओवर ब्रीज के ऊपर से गुजर
रही थी
वही ओवर ब्रीज के नीचे
काले अँधेरे में
14 साल की सुभागी ( पता नही ये
नाम किसने रखा )
बस पचास रूपये के संभावना
में
पसीने की खट्टी उतस गंध से
भरे
अधेड़ ऑटो रिक्से वाले के
नीचे
रौंदी जा रही थी
सुभागी ने अभी-अभी
इससे पहले लम्बी सांस ली थी
इससे पहले लम्बी सांस ली थी
झिल्ली में भरे, थिनर से
भीगे रुमाल से
दर्द सहने के लिए
20 रूपये का थिनर का खर्च
के बाद
क्या बचता है उसके पास ?
बस कल
उसके पास जीने के लिए
ऑटो रिक्से वाले के हर धचक
के साथ
सुभागी का (उसे भी पता नही
किसने ये नाम रखा )
उसका वैकल्पिक दुनिया का सपना
सुभागी के नीचे बिछे कारटून के
तुकडे के नीचे
कुचलता जा रहा था
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