गीत - ठहर जा ए मेरे अरमां, अधूरी ये कहानी है ..तीन
मुस्कुराया देखा या देख मुस्कुराया क्या फर्क पड़ता है
उसका इश्क नए ज़माने का रोज़ चेहरा बदलता था
इक मेरी आवारगी पर ना मेरा बस ही चलता था
इस दर से उसके दर तक ये मुसाफ़िर बेबस ही चलता था
चल चलें सफ़र को बस अब के चल निकलना है
खुदा को मुहँ भी दिखाना है, कुछ रस्मे दुनिया भी निभानी है
ठहर जा,
ए मेरे अरमां, अधूरी ये कहानी है
मेरे दिल में दबे तूफ़ान को वो मेरी धड़कन समझते है
जाहिर है मिरे गर्दिशे अय्याम को वो कम समझते है
है सितम जरीफ पर खुद को मेरा हमदम समझते है
आँखों में लिए ख़्वाब उस तेज़ाब का
हम ना पलके है झपकायें
तड़फ आँखों की या दिल की हम किसको बतलायें
कैसे कहे किसके राहे शौंक ने मुझे यूँ बेबस है बनाया
उड़ा कर आलम-ए-हवास मेरा, ना ठुकराया ना अपनाया
खुदाया वो दर्द की दुनिया को कुछ कम समझते है
अपने हर करम को मेरे
दर्द का मरहम समझते है
अपने नम आँखों की शरारत को वो अपना गम समझते है
लुफ़्त-ए-किस्सा--ए-गैरे वफ़ा ले, हमें वो कम समझते है
उनका हर किस्सा कुछ नया है , पर हर्फें पुरानी है
ठहर जा,
ए मेरे अरमां, अधूरी ये कहानी है
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