ग़ज़ल - फर्क क्या मीना साकी कौन मयखाना किसका
ये तिश्नगी ये महफ़िल ये ज़माना किसका
जिस मुल्क के हुक्कामों की फितरत फरेब हो
फिर कैसे तसल्ली और आजमाना किसका
इस राह में दुश्वारियों जब रोजनामचा हो
तब छोड़ जाना किसका और निभाना किसका
जब राहे इश्क में वफ़ा यूँ मुख़्तसर सी बात हो
गैर राह जाना किसका और संग आना किसका
मसरुफ़ियत है उनकी जब गैर के महफिल में
तब याद करना किसका और भूलजाना किसका
बहुत उम्दा गज़लें लिखते हैं भाई साहब आप. इस व्लॉग के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंछत्तीसगढ़ ब्लॉगर्स चौपाल में आपका स्वागत है.
बहुत-बहुत धन्यवाद, संजीव जी ........
हटाएंसुझाव : इस ब्लॉग टैम्पलेट की चौड़ाई कम करें और कमेंट वर्ड वेरीफिकेशन आप्शन हटा दें.
जवाब देंहटाएंसुझाव के लिए धन्यवाद ......!
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