ग़ज़ल -- खुद्दारी के मायने भी क्या पूछते हो हमसे
तेरी बेताल्लुकी से उबर आना, हम जानते है
दर्द से दर्द का रिश्ता निभाना हम जानते है
दुश्वारियों में जीने की अदा कोई सीखे हमसे
हर जख्मो-ओ-गम में मुस्कुराना हम जानते है
तुम्हे अपना कहूँ कैसे अजनबी सा रुख है तेरा
तू दिल्लगी कर पर दिल लगाना हम जानते है
हम वो नही जिन्हें अपने जुनून पे ऐतबार नही
आंसूं हो या पानी आग लगाना हम जानते है
तूफान की मिज़ाज को तवज्जो मिलेगी हमसे
दरिया के किनारे भी डूब जाना हम जानते है
खुद्दारी के मायने भी क्या पूछते हो हमसे
अपने ही आँखों से गिर जाना हम जानते है
दुनियादारी उनकी मजबूरियां होंगी पर नादाँ
रिवाज-ओ-दश्तुर को अजमाना हम जानते है
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