विचार - अंग्रेजी भाषा की अनिवार्यता, एक जरूरत
अंग्रेजी भाषा की अनिवार्यता, एक जरूरत ?
माध्यमिक शिक्षा आयोग या मुदालिय शिक्षा आयोग (1952’ 53) ने माध्यमिक
शिक्षा के स्तर पर हिन्दी के प्रचार-प्रसार को महत्त्व देते हुए त्रिभाषा सूत्र के
प्रारम्भिक रूप को प्रस्तुत किया। इसके अनुसार माध्यमिक स्कूल के सभी स्तरों पर
मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा शिक्षा का माध्यम हो । मिडिल
स्कूल स्तर पर हिन्दी और अंग्रेजी इस प्रकार लागू की जावे कि दोनों भाषाएँ एक ही
साथ न शुरू कर उनके बीच एक वर्ष का अंतर रखा जावे। माध्यमिक शिक्षा आयोग के
बाद केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड ने स्पष्ट रूप से माध्यमिक स्तर के लिए
त्रिभाषा सूत्र अपनाने की सलाह दी। इस त्रिभाषा सूत्र, भाषा समस्या का सर्वोत्तम
समाधान है। चुंकि भारत एक विशाल बहुभाषी देश है हिन्दी भारत को एक राष्ट्र के रूप में जोडे रखने के लिए समर्थ है साथ साथ
गैर हिन्दी भाषी प्रदेशों के साथ संवाद, आवागमन एवं प्रवाह के लिए तथा हिन्दी
को स्वीकारीय स्थिति तक जाने के लिए
त्रिभाषा का होना आवश्यक है ।
वैश्वीकरण के
इस दौर में हमें अंग्रेजी के समक्ष दंडवत होने, उसे ही अपनी जीवनशैली
और बोलचाल में ढालने की आदत पड़ गयी है। हमने यह भ्रम पाल रखा है कि हिंदी तो
अनपढ़ों, पिछड़े हुए दबे-कुचलों की भाषा है और अंग्रेजी
बाबुओं, करोड़पतियों और संभ्रात, कुलीन
और अग्रणी वर्ग की भाषा है एक नजरिया यह हो सकता है । लेकिन जब गरीब तबके को आज
की इस अंग्रजी परस्त व्यवस्था में अपना स्थान बनाना हो तब अंग्रेजी को शिक्षा
के अनिवार्य माध्यम के रूप स्वीकार करने में कोई गुरेज नही करना चाहिए । क्युकि
अच्छी शिक्षा, अच्छी किताबें, विश्व स्तर पर दखल, विज्ञान की शिक्षा, विश्व
स्तर पर व्यापार तथा प्रभावशली पदो तक पहुचना जैसे विषयों में अंग्रेजी सहायक हो
सकती है लेकिन इसे मजबुरी के हद तक पंहुचने का अवसर ना दिया जावे जो अच्छा
होगा । त्रिभाषा र्फामुला को कडाई से जारी रखते हुए हिन्दी एवं अंग्रेजी को माध्यमिक
स्तर तक बोलना, लिखना एवं व्यक्त करने के स्तर तक ज्ञान को अनिवार्य करना होगा
।
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